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प्रेम जब अपने प्रेम के सम्मान के लिए खड़ा होता है तब दशरथ मांझी जैसे लोग पैदा होते है प्रेम की पराकाष्ठा जब जिद पर आए तो उसकी जिद्द उसे दशरथ मांझी बना देती है वो प्रेम ही क्या जो प्रेम की तड़प पर खामोश रहे जाग जाए वो प्रेम जिसके आंखों मे प्रेम की पराकाष्ठा के अपूर्णता से पूर्णता की तदवीर रहे
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तुम्हारी बेबसी पर हंसा ये पहाड़
बंजर कर दूंगा मै अब ये पहाड़
यही एक बिखरे प्रेम को
एक टूटे प्रेम का उपहार
दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को हुआ था एवं इस महान इंसान की मृत्यु 17 अगस्त 2007 को हुई थी उन्हें माउंटेन मैन भी कहा जाता है दशरथ मांझी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी वो मजदूरी किया करते थे वो बिहार के नजदीक गहलौर गाँव मे रहते थे दशरथ मांझी बहुत पिछड़े इलाके मे रहते थे उन्होंने जीवन मे बहुत संधर्ष किया है उनका गाँव काफी पिछड़ा था कोई भी जरूरत की वस्तु को खरीदने के लिए पूरे पहाड़ को पार करके जाना पड़ता था
दशरथ मांझी ने शुरुआत के दिनो मे धनबाद के कोयले की खान में भी काम किया था उनका विवाह फाल्गुनी देवी से हुआ था जिनसे दशरथ मांझी अटूट प्रेम करते थे
दशरथ मांझी की पत्नी की मृत्यु अस्वाभाविक रूप से हुई थी जब वो पहाड़ से गुजरने के क्रम मे फिसलकर नीचे दर्रे मे जा गिरी थी चूंकि पहाड़ को पार करके ही चिकित्सा संबंधी सुविधा दी जा सकती थी लेकिन समय के अभाव मे ये संभव ना हो सका और दशरथ मांझी की पत्नी फाल्गुनी देवी का देहांत हो गया जिसे दशरथ मांझी को बहुत दु:ख हुआ वो टूट गये जब कोई किसी से समर्पित होकर प्रेम करता है और जब वो उसे छोड़कर चला जाता है तब उसका दु:ख केवल वही समझ सकता है जिसने सच्चा प्रेम किया हो, दशरथ मांझी का इस संसार मे अब कोई सबसे बड़ा दुश्मन था तो वो पहाड़ जिसे गहलौर कहते थे
जिसने उनके पत्नी उनके सच्चे प्रेम को उनसे छीन लिया था फिर क्या था प्रेम प्रतिशोध पर आ गया और अपना सारा गुस्सा अपनी पूरी भड़ास उस पहाड़ पर निकाल दी छेनी और हथौड़ी लेकर और दंभ चूर -चूर कर दिया उस पहाड़ का, जो विजयी मुस्कान लिए खड़ा था जिसने दो प्रेम करने वाले को अलग किया था और देखते ही देखते दशरथ मांझी ने रास्ता बना दिया ताकि कोई और प्रेम किसी और प्रेम को असमय जाता ना देख सकें
दशरथ मांझी ने 360 फुट लम्बा 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ी पहाड़ी को अपने प्रेम की अग्नि के क्रोध मे जलाकर समतल बना दिया उन्होंने 22 सालो तक खुद को इस कार्य मे लगाये रखा जो रास्ता लोगों के लिए 55 किलोमीटर का था उसे उन्होंने 15 किलोमीटर का कर दिया था अपने प्रयास से
इन्होंने 1960 मे पहाड़ मे सुराख करना शुरू किया और 1982 मे इस पहाड़ को ध्वस्त कर रास्ता बना डाला उनके इस कार्य से गहलौर के लोगों के जीवन मे बहुत राहत मिली दशरथ मांझी ने जब पहाड़ तोड़ने की शुरुआत की थी तो लोग उन्हें पागल कहते थे लेकिन लोगों को शायद ये पता नहीं की पागल लोग ही इतिहास बना डालते है बस पागलपन का उपयोग सही दिशा मे हो
उन्हें दुनिया आज माउंटेन मैन के नाम से जानती है शायद इसी वजह से, दशरथ मांझी की मृत्यु कैंसर से 78 साल की उम्र मे हो गई थी 17 अगस्त 2007 को
बिहार की राज्य सरकार ने उनका अंतिम संस्कार करवाया था दशरथ मांझी प्रेम के समर्पण के ऐसे प्रतीक है जैसा ना शायद कोई हुआ था और ना ही होगा, पूरा जीवन एक पहाड़ को तोड़ने में लगा दिया जिससे गिरकर उनकी पत्नी की मृत्यु हुई कितना दु:ख और पीड़ा होगी फिर भी पूरा जीवन समर्पित कर दिया ताकि कोई और ये दु:ख ना सहे
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मैंने एक कविता के जरिये उनके दु:ख को समझने का प्रयास किया है
ऐ पहाड़ तू हंस रहा है मेरी बेबसी पर
मातम में भीगी मेरे आंसुओं की स्थति पर
पर जी भर के हंस ले आज
क्योंकि कल से मै तेरे अंहकार पर इतनी चोट करूँगा
जब तक ये समाप्त ना हो जाए