Poem on unemployment in Hindi

Poem on unemployment in Hindi

अपनी नौकरी से कई सपने देखे थे लोगों ने
शायद वो सपने टूट गये
जीवन के बीच मजधार में सहारे छूट गए
नौकरी किसी के लिए पाना मुश्किल होता है
किसी के लिए पाना आसान होता है मगर
जिम्मेदारी और उसके भी ऊपर
नौकरी चले जाने का डर
एक जैसा ही सब पर दवाब होता है
कोई डरता है कोई नहीं डरता है
कोई सुरक्षित महसूस करता है
कोई असुरक्षित महसूस करता है
सबके कंधो पर बोझ से ज्यादा डर हमेशा
इस बात का होता है जिम्मेदारी कभी
वो ना निभा पाए तो फिर क्या होगा
घर कैसे चलेगा छोटे बच्चे का दूध कहाँ से आएगा
बच्चे की स्कूल की फीस कहाँ से दे पाएंगे
सब्जी राशन घर का बुढ़े माता पिता की दवाई
कहाँ से आएगी उनके ईलाज का खर्च कैसे चलेगा
मकान का भाड़ा कहा से देगे
जिसने ये बोझ महसूस किया फिर वो
नौकरी कैसी भी कर ले मगर अंदर से
हमेशा डरा हुआ होता है
जिन्होंने नौकरी गवाई

Poem on unemployment in Hindi

अपनी उनकी सूद कौन लेगा
उनके बच्चे भुखे है घर की हालत कैसी है
ये कौन जानेगा बस एक फैसला कोई लेता है
और हजारो जिंदगी को प्रभावित कर देता है
फैसला लेने वाले का क्या गया कुछ भी नहीं
मगर उस फैसले से हजारो लोगो की
जीवन की नाव मजधार में फंस गयी
नाव अब कैसे चलेगी
नौकरी इंसान को इतना मजबूर बना देती है
कभी कभी वो हंसना भी भूल जाता है
कभी शब्द को भी खुद को विराम देना पड़ता है
क्योंकि शब्द इससे आगे कहे भी तो क्या
कोई कभी कभी कितना मजबूर हो सकता है
ये उसके अलावा कौन भला जान सकता है
नौकरी देना आसान होता है

बेरोजगारी पर कविता


मगर नौकरी छिन लेना
उससे भी आसान होता है
इस आसानी में किसी किसी के लिए
क्या मुश्किलें आती है ये भला कौन समझ सकता है


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