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आसमान में जब दिन ढ़ल रहा था
तुम्हे चुपचाप बैठे देखा था मैने
अपने ही ख्यालों में खोई हुई
आसमान की तरफ ढ़लते सूरज को देखते हुए
बहुत से सवाल थे तुम्हारे मन में
खुद के लिए ही ना जाने कितने सवाल
जवाब तुम ढूँढ रही थी उन सवालों का मुझ में
मगर तुम्हे देख कर ऐसा लगता है
तुम्हे इन सवालों का जवाब पता है शायद
मेरा मन कहता है तुम्हारे पास आकर मै
तुम्हारे पास तुम्हारे बगल में बैठकर
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तुम्हारा हाथ पकड़कर अपने साथ चलने के लिए कहूँ
इतना कहूँ चलो अब बहुत देर तुमने लगा दी है
अब और देर किसलिए
चलो हमारे सपने हमे बुला रहे हैं
हमारा घर हमे बुला रहा है
प्रेम के वे रास्ते हमे बुला रहे हैं
अब तुम्हे इन रास्तो पर चलना ही होगा
कितना भागोगी इन सब से
सामना तो तुम्हे करना ही होगा
अब बस ना तुम कुछ कहो और
ना ही मै कुछ कहूँ बस
एक दूसरे का हाथ पकड़कर घर चलते हैं
दूर यहाँ से बहुत दूर
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तुम ये सुनकर मेरे कंधे पर सर रखकर
मुझसे कहोगी हां चलो चलते हैं अब