कभी – कभी खामोशी को सुनना अच्छा लगता है
जहाँ कोई शोर ही नहीं होता
कोई भी आवाज नहीं बस
हर तरफ एक अजीब सी खामोशी
फिर भी लोगों को खामोशी से डर लगता है
रात को मै जागता रहता हूँ
हर कोई सो रहा होता है और
मै खामोशी को बस
समझने की कोशिश करता हूँ
ये भी मेरी तरह ही है
ये जानती है खामोशी शोर मचाने से भी
कुछ हासिल नहीं होने वाला
कोई नहीं आने वाला साथ देने के लिए
इसलिए ये खामोशी खामोश रहती है
लेकिन मै हूँ ना साथ देने के लिए
खामोशी की खामोशी में
खामोश होकर अपने लिए कुछ पल
जो दिन भर बचा कर रखता हूँ
उन्ही पलो को जीता हूँ
अब ये खामोशी मेरी
उम्र भर के लिए है या भी चीरकाल तक की
ये कौन जानता है सिवाय इस खामोशी के
मै पूछ भी नहीं सकता अगर खामोशी से
पूछूँगा तो जो खामोशी छाई है
जिस खामोशी में खामोशी अब तक खामोश है
फिर शायद उसकी खामोशी टूट जाएगी