आज डूबते सूरज ने शायद पहली बार उस चांद को देखा था
सूरज कुछ पलो के लिए जैसे रूक गया था
शायद अब सूरज ढ़लना नहीं चाहता था
उसके दिल में बस अब उस चांद के पास
जाने की ख्वाहिश ही थी
सूरज आज बस उस चांद को पाने की ख्वाहिश लेकर ढ़ला था
उस चांद ने भी सूरज को देखा था
चांद के दिल में भी सूरज के लिए प्यार जाग चुका था
सूरज ने ये सोचा था कल सुबह में मै जब आऊंगा
तो फिर मै चांद को ढ़लता हुआ देखूँगा काश ये ना होता
हमारी कैसी विडम्बना है जब भी हम मिलते हैं
तब कोई ना कोई ढ़ल रहा होता है
ये दुख मै कब तक सहता रहूँ
ये बोझ कब तक लेकर
हर रोज जलता ही रहूँ और
मेरे इस दर्द की आग से दुनिया रौशन होती रहे
मै जलता ही रहता हूँ तड़पता रहता हूँ
लेकिन कोई मेरी तरफ एक बार भी
स्नेह भरे नजर से देखने से डरता है शायद
मेरे दुख की आग उनके आंखों की रौशनी ही ना छीन ले
ये वो अद्धभुत पल हर रोज बन जाता है
जहाँ सूरज और चांद जब मिलते हैं
लोग मंदिर में मस्जिदों में घरो में इस पल पुजा करते
जब सूरज ढ़लता है और जब चंद्रमा ढ़लती है
उन्हें भी सूरज और चांद का दर्द
एक दूसरे के लिए देखा नहीं जाता है
यही सोचकर शायद लोग भी शाम में सुबह सुबह
पुजा करते हैं और ये ख्वाहिश रखते हैं
की चांद से सूरज हमेशा के लिए एक हो जाए
दोनों अब मिल जाएं हमेशा हमेशा के लिए