एक भिक्षा मांगने वाला बहुत दिनों से भूखा है
वो एक स्थान पर बैठा है मन मे आस लिये
वो बहुत भूखा है उम्मीद की आस लिए बैठा है सड़क किनारे
शायद कही से कोई आकर उसकी भूख को शांत कर सके
शायद कही से भी कोई तो आए,
उसके लिए गर्म कपड़े और भोजन लेकर
लेकिन उसकी प्रतिक्षा तो बेवजह ही है
कोई नहीं आने वाला है उसकी आशा को पूर्ण करने
सर्दियों की रात है ठंडी तेज हवाएँ चल रही है
उसके कपड़े हर जगह से फटे हुए है
शायद उन कपड़ो मे उसे ज्यादा ठंड लग रही है
कुछ दिनों से निगाहें सड़क पर ही जमी है
क्योंकि उम्मीद अब दम तोड़ रही है
शायद कोई आएगा मेरे लिए
खाना और गर्म कपड़े लेकर ऐसा सोचना व्यर्थ है
लेकिन आज भी शायद कोई नहीं आया
उसकी आंखे कब से उम्मीद तलाश रही है
शायद आने जाने वाले हर अजनबी से कह रही हो
शायद मेरी मदद करो मुझे तुम्हारी जरूरत है
उसके आंखों मे आंसू है आज
शायद आज उसकी भूख की सीमा पार हो गयी
वो ठंड से काप रहा है
उसकी आंखे आंसुओं से गिली हो चुकी है
उम्मीद की तलाश में नाउम्मीद होकर सो गया
जब उसने आंखे खोली तो उसने देखा
उसके शरीर पर मोटे कम्बल रखे है
जिससे उसे ठंड नहीं लग रही है
तभी उसकी नजर सामने पड़ी
जहाँ उसके लिए ढ़ेर सारा खाना रखा है
लेकिन वहाँ पर कोई नहीं है
दूर तक देखने पर भी कोई नहीं दिख रहा
भिक्षुक समझ गया की जब तक आप मे
विश्वास है और जब वो विश्वास
आस्था और पूर्ण समर्पण मे परिवर्तित हो जाती है
तब आप का विश्वास ईश्वर कभी टूटने नहीं देता