भव सागर के जाना हो पार तो सदैव सत्य हो आधार
कभी कभी असत्य भी ले जाए भव सागर के पार
जिस असत्य का धर्म हो केवल आधार
कल्याण की भावना और प्रेम करूणा की हो
आंसूओ सी जब हो बौछार
समझ जाना हो गये भव सागर के पार
ना कश्ती ना जहाज बस प्रेम का जब पा लिया प्रकाश
कोई रोक नहीं सकता जाने से तुम्हे भव सागर के पार
आत्मा की शुद्धता ही तो है प्रेम का संसार
प्रेम ही तो जोड़ देता ईश्वर से तुम्हारे हि्दय के तार
फिर अवगुण है ही कहाँ बस प्रेम ही प्रेम है जो
जीवन जीने के लिए सबसे बेहतर है संसार
प्रेम का फाटक बंद कर रखा है सदा से
मलिन कर रखा है हि्दय का जो है द्धार
फिर कैसे ले जाऐ कोई उस पार
जब ना देखो बंद फाटक के पार
प्रेम लिए कब से खड़ा है कोई तुम्हारे द्धार
खोल दो अब फाटक के द्धार थाम लो
बढ़कर ये हाथ फिर चलो भवसागर के पार
जिसका सदा सबके लिए खुला ही रहता है द्धार