जब भी चांद की बात आती है तो तुम्हारी याद आती है
फिर नींद कहाँ रातो में आती है
फिर तुम्हारे चेहरे की चमक से पूरी
रात ही रौशनी से जगमगाती है
इतनी रौशनी होती है चारो ओर
की रात भी हमें दिन ही नजर आती है
फिर फर्क ही मिट जाता है रात और दिन का
इन आँखों से फिर सब एक जैसा ही नजर आता है
दिन भी रात बन जाती है और रात दिन बन जाती है
ये तुम्हारी ही तो जादूगरी है
फिर हमें ये फर्क ही पता नहीं चलता
हम सूरज है या फिर चकोर है
हम खुद को ही भूल जाते हैं
फिर शायद सदियां लगती है
खुद को पहचानने में फिर भी पहचान नहीं पाते खुद को
तुम ही शायद मेरी पहचान लेकर आ सकती हो
सदा सदा के लिए जो फिर कभी
मुझसे नहीं छिनेगी वो पहचान सदा मेरी रहेगी