बचपन तरसता खेलने के लिए

क्या बचेगा भविष्य जब बचपन ही लूट जाएगा

मुझे एक भोज का निमंत्रण आया था

मै भी वहाँ जाने के लिए शायद उत्साहित था

अच्छे-अच्छे भोजन का मै स्वाद ले सकूँगा

स्वादिष्ट भोजन की छवि जहाँ बीते चैन से बचपन

मै पूरे उत्साह से वहाँ गया भोजन करने

मन में शायद तरह तरह के स्वादिष्ट भोजन की छवि

बार बार उभर कर आ रही थी मन में

लेकिन जब मैं वहाँ पहुँचा तो देखा वहाँ पर

बहुत सारा खाना जो लोगों ने लेकर शायद

आधा खाकर एक कोने में बाहर शायद रख दिया था

वहाँ पर कितने छोटे छोटे बच्चे जो शायद कई दिनों

से भूखे थे वहाँ लोग के झूठे भोजन से जो लोगों ने

कचरा जान कर वहाँ भोजन को फेक दिया था

और वही से छोटे भूखे बच्चे उसे उठा कर खा कर

बच्चे का बचपन ना परेशान हो जहाँ मासूमियत बना ना रेगिस्तान हो

अपना पेट भर रहे थे और शायद मुस्कुरा भी रहे थे

फिर मै वही से वापस लौट गया मुझे ऐसा लगा

आज अगर यहाँ खाना खा लिया तो फिर मै कैसे

आगे खा पाऊँगा जब भी खाने बैठूंगा तो फिर वही कूड़े से

भोजन इकट्ठा करते बच्चों का मुस्कुराता चेहरा नजर के

सामने आएगा फिर भोजन का एक एक निवाला कंठ में

जहर की तरह नीचे गले से उतरेगा

उन बच्चों की जिंदादिली ने तो मुझे बर्बाद कर दिया

कूड़े से भोजन उठा कर खा रहे थे फिर भी चेहरे पर

वो तेजस्वी मुस्कान जिसके आगे मुझे तो आज सूर्य का

तेज भी फीका ही लग रहा था

मैं निशब्द हो गया था वो सब देखकर और

आज जब भी खाता हूँ तो अब भी निशब्द होकर ही खाता हूँ

हर रात कोई रात शायद ऐसा नहीं गुजरता है

जब मै ये सोचता हूँ सोने से पहले आज ना जाने

कितने बच्चे भूखे सो गये होगे कभी ये बेचैनी मुझे

धिक्कारती है मै खुद के लिए ही कुछ नही कर पा रहा हूँ

उन भूखो बच्चों के लिए कुछ तो कर सकूँ तब शायद

कोई बच्चा ही नहीं बल्कि जहाँ तक हो सके कोई मेरी

नजरो मे ऐसा ना हो जो भूखा सोया हो रात में

बच्चे का बचपन जहाँ परेशान ना हो

मै कितना कमजोर हूँ ये हर रोज रात में सोने से पहले

मुझे इसका एहसास होता है

ये जरूरी नहीं हर मकान आलिशान हो

छोटी सी कुटिया ही हो मगर

वहाँ कोई भूखा ना इंसान हो

बच्चे का बचपन वहाँ ना परेशान हो

जहाँ बीते चैन से बचपन

जहाँ मासूमियत बना ना रेगिस्तान हो

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