सकारात्मक कविताओं द्धारा मानवीय पहलू|Superb Hindi Poem On Reality Of Life

दो पल खुद से बात करो खुद की खामोशी से मुलाकात करो

मेरे घर मे कई खिड़कियां है 

मगर वो सारी बंद रहती है 

घर मे हवाएँ भी कुछ मंद रहती है

घर का मौसम भी कुछ बुझा बुझा सा है

शायद कही कुछ रूका रूका सा है

मैने आज उन खिड़कियों को खोला है

मैने हंसकर मन से ये बोला है

खिड़कियों को यूं ही खुला रखूँगा सदा

जीने की शायद कुछ तो मिले वजह

ताजी हवा जब घर में आएगी

तुम्हे भी साथ कभी -न-कभी लेकर आएगी

मेरे घर मे कई आईने है

जिसके बेईमाने से मायने है

जिसमें मुद्दतो से मैने खुद को नहीं देखा है

जहाँ जमी धूल मिट्टी की मोटी सी एक रेखा है

ऐसे हालात में मैने कभी नहीं खुद को देखा है

शायद मुझे मेरी पहचान  याद नहीं

आप की असली पहचान अपनी खुशियों को पाने में है सौदा खुशियों का करना जैसे खुदखुशी करने जैसा है वो जीवन जीओ जो जीना चाहते हो

शायद मुझे मेरी मुस्कान याद नहीं

मैने आज खुद को उस आईने मे देखा है

मेरे होठों मे उकेरी हंसी की एक रेखा है

मैने खुद से आज ये हंसकर बोला है

इसी तरह आईने मे खुद को देखूँगा सदा

शायद कुछ तो दिख जाए मुझमे जीवन जीने की वजह

बंद खिड़कियों के पार भी कही एक दुनिया है जहाँ खिड़कियां हमेशा खुली रहती है

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