life struggle poem on life in hindi|बाहर का शोर भीतर की खामोशी

जीवन में मिला मै अपने आप से खोये विश्वास से सूरज की रौशनी में अंधेरी रात से

रात भी बड़ी अजीब होती है

जितनी खामोशी बाहर होती है

उतना ही शोर भीतर होता है

कभी कभी ये समझ में नहीं आता है

मै इतना बेचैन

बाहर का शोर भीतर की खामोशी

बाहर की खामोशी से हो रहा हूँ या

फिर भीतर के शोर से

अचानक से बाहर इतनी तेज हवा चलने लगी है

हर ओर सूखे पत्ते उड़ रहे हैं

हवाओ ने भी बहुत तेज शोर मचा रखा है

कही हवाओ के जोर से दरवाजे

खिड़कियां दीवारो से टकरा कर

तेज आवाज बहुत तेज आवाज कर रहे हैं तो फिर

कमरे में इतना सन्नाटा क्यो महसूस होता है

कोई आवाज मुझे इस खामोशी के शोर से बाहर बाहर निकाल दे

अपने भीतर इतनी खामोशी के

बोझ को मै नहीं उठा पा रहा हूँ

मुझे कोई आवाज क्यों नहीं सुनाई दे रही है

मेरी कोशिश शायद मुझे

इस खामोशी के शोर से बाहर निकाल दे

क्योंकि खामोशी का शोर बहुत भारी है

बाहर के शोर से

मै भी हवा का वो तेज शोर सुनना चाहता हूँ

जो शोर अपने राह में आने वाली हर चीज को

अपने में मिलाकर उड़ा ले जाती है दूर बहुत दूर

हवाओ के शोर से साथ बहता ही चला जाना चाहता हूँ

मै भी अब उस बाहर के हवाओ के शोर से साथ

अब बस बहता ही चला जाना चाहता हूँ

इस खामोशी के शोर से दूर बहुत दूर

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