प्रेम को अगर सीमित कर दिया जाए किसी
दायरे में उसे बांध दिया जाए तो
फिर वो प्रेम ही कहाँ रह जाऐगा
प्रेम भला बंधन में कब रहा है
प्रेम को भला बंधन में कौन बांध पाया है
प्रेम तो बड़े से बड़े कैद की मजबूत
बेड़ियों को भी तोड़ देता है
ऐसे जैसे किसी रेशम के
धागे को कोई तोड़ डालता है
प्रेम तो स्वच्छंद हवाओ की वो आंधी है
जो अपने मार्ग में आने वाली
हर एक चीज को बहा कर ले जाती है
प्रेम की कोई दिशा तय नहीं होती है
जिस दिशा से प्रेम की हल्की सी
आवाज या तेज गूंज सुनाई देती है
बस प्रेम उस ओर ही प्रवाहित होने लगता है
प्रेम में अपने प्रियतम और अपनी प्रियतमा का चेहरा
संसार में सबसे सुंदर चेहरा नजर आता है
प्रेम की ध्वनि से निकले अपने प्रेम की आवाज
संसार की सबसे मीठी आवाज प्रतीत होती है
फिर कोई भी आवाज इन कानो को तृप्त नहीं करती
सिवाए उस एक आवाज के
अपने हि्दय की गति को नियंत्रित करने वाली
प्रेम की हंसी तो आसमान में गरजते बादलों के उस
गर्जना के आगे भी बहुत बड़ी प्रतीत होती है
उस प्रेम के हंसी के आगे सब कुछ
कितना छोटा प्रतीत होता है
प्रेम को कभी समझा नही जा सकता है
बस प्रेम में बहा जा सकता है दूर बहुत दूर तक
ऐसी जगह बह जाना जहाँ पहुँचने पर प्रतीत हो
क्या यही मुक्ति का वो मार्ग है
जिसकी खोज ना जाने कितने वर्षों से हो रही है