एक सूनी आंखे कब से राह तक रही है
राह तकते -तकते अब वो थक चुकी है
वो बूढ़ी आंखे अपने बेटे के इंतजार मे
कब से पलकें बिछाएं है
उन आंखो से इतने आंसू निकले
की अब शायद आसूं सूख चुके है
या खत्म हो चुके है
उनका बेटा जंग पर गया और
आज दस साल हो गये वो अब तक नहीं लौटा
उसकी माँ उसका इंतजार हर दिन करती है
कही से उसका बेटा आऐगा और मां कहकर
उसके सीने से लग जाएगा
अब शायद उन बूढ़ी आंखो का अंतिम समय आ गया है
कुछ चंद सांसे बहुत मुश्किल से ले पा रही है
अंतिम बार अपने बेटे को देखना चाहती है
उन आंखों मे युगों सा लम्बा इंतजार है
जो शायद इस युग मे पूरी ना हो सके
तभी दरवाजे में एक हल्की आहट होती है
एक आदमी आता है जिसके हाथो में
एक अखबार का टुकड़ा है जिसमें
उनके बेटे की तस्वीर है, जिसमें लिखा था
दुश्मनों की कैद में कुछ लोगों को आजाद
किया जा रहा है उनमें उनके बेटे की भी तस्वीर थी
उन तरसी निगाहों ने ये देखकर आंखों की
सुनामी को ना थाम पाई
शायद उन सूनी आंखों को उम्मीद मिल गई थी
अब उन्हें जीना का सहारा वापस मिल गया था
अब मौत को भी खाली हाथ लौटना होगा