मेरे कार्यालय के पास एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था
उस भीड़ भाड़ वाले ईलाके मे जहाँ तक नजर जाए
बस वही एक पेड़ नजर आता था
कार्यालय मे काम करने वाले लोग तथा
आस-पास के लोग भी वहाँ उस पेड़ के छांव
मे आकर घंटो बैठा करते थे
आपस मे सुख दुःख बांटते थे
वो पेड़ नहीं उनके जीवन का हिस्सा था
जहाँ कही न कहीं उस पेड़ की छांव मे बैठकर
वो सुकून के कुछ पल खुल कर जीते थे
उस भीषण गर्मी मे बस वही एक विशाल पेड़
सब का ध्यान रखता था उन्हें
ठंडी हवा तथा शीतलता प्रदान करता था
जिससे लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरती रहती थी
मै जब सुबह कार्यालय आया तो देखा
कुछ लोग पेड़ों को चारो तरफ से घेरे हुए थे
उस पेड़ को सब मिलकर काट रहे थे
आस-पास के लोग बहुत हैरान और दु:खी थे
उस पेड़ पर रहने वाले पक्षियों मे हलचल थी
शायद आज उनका आशियाना उजड़ रहा था
वहाँ पर उस पेड़ को काट कर
एक कार्यालय का निर्माण होने वाला था
शायद सबको छांव प्रदान करने वाला पेड़
सबके सुख दुःख बांटने वाला पेड़
आज अंतिम सांस ले रहा था
अब लोग कहां बैठकर पल दो पल सुकून से
आपस मे अपने सुख दुःख बांट सकेगे
अब आस -पास वो मुस्कान कहाँ बिखरेगी
अब ठहाको की आवाज उन
फिजाओं में कभी नहीं गूंजेगी
इस चिलचिलाती धूप मे लोगों को
कौन सहारा दे पाएगा