क्या तलाश करूँ मै ऐसा लगता है
हर तलाश खत्म हो गयी
कितना घना बादल हैं आसमान में
फिर भी बरसात खत्म हो गयी
हम मिलते थे अक्सर कही न कहीं
ऐसा लगता है अब वो इतेफ़ाक खत्म हो गई
हर सुबह उठता था मै तुम्हारे हंसी के गूंज से
ऐसा लगता है तुम्हारे
मुस्कुराने के अल्फाज खत्म गयी
हम मिलेगे दिल के फूल खिलेगे
हम कब तक यू ही जलेगें
दो चार युग की बात नहीं
हर युग में हम ऐसी ही दुखो में ढ़लेंगे
हमारा मिलना जरुरी है क्या फिर भी
हम विरहा की अग्नि में जलेगें