आज आसमान का रंग कुछ बदला सा है
शायद कही बरसात हुई है कही वर्षों के बूंद गिरे हैं
तो कहीं जज्बात के बादलो से नमकीन आंसू गिरे हैं
मगर बरसात बहुत हुई है बाहर भी और अंदर भी
बाहर सारी मिट्टी गीली है हर जगह पानी भरा है
बाहर हर ओर कीचड़ ही कीचड़ है और
भीतर शायद हर कीचड़ इस नमकीन आंसू में धूल चुके हैं
मन के भीतर अब तो सब कुछ भींगा भींगा सा है
इस भींगे पानी में मन बहता ही जा रहा है
कोई कितना मन ही मन सब कुछ सहता ही जा रहा है
कोई भी नहीं है उसके व्यथा को समझने वाला
उसकी पीड़ा से उसे उबारने वाला
उसकी आंखे हर रोज उम्मीद की तलाश करती है
हर रोज उसकी उम्मीद टूटती है और
हर रोज फिर उसे उम्मीद होती है
जैसे सब कुछ ठीक हो जाएगा
यही तो जीवन जीना है
जहाँ दुख को भी गले से लगाया जाता है