मैने जब घर के बाहर रखा कदम
बेचैनियाँ साथ मेरे थी हरदम
फिर मैने प्रगति की आश की
सफलता के पथ की तलाश की
दो रास्ते मुझे नजर आए
जिसके बन रहे थे दो साऐ
एक रास्ता बड़ा सुनसान था
वो रास्त बड़ा बियाबान था
उस पर बिछे कांटे ही कांटे थे
हर ओर पत्थरो का ऊंचा पहाड़ था
बहुत कठिन रास्ता था वो मगर
जिसपर चलना दुशवार था
दूसरे राह को जब मैने देखा
दूसरे रास्ते पर फूल बिछे थे
हर जगह फूल खिले थे
हर ओर शोर था
बहुत ही ज्यादा हर ओर था
मुझे ये राह लग रहा था आसान
जिसे देखकर आई मुझमें जान
फिर देखा की
उस राह की जमीन दलदली थी
कीचड़ के जैसे मलमली थी
जहाँ भ्रम का जाल था
आसान राह की चाहत मे
फंसा वहाँ हर कोई बेहाल था
फिर मै समझ गया जीवन का खेल
फिर मैने कठिन राह पर कदम बढ़ाया
बियावा और विरान भरे रास्ते पर चिल्लाया
बताया उन पथरीले पहाड़ो को
की तुम्हे मै पार कर जाऊँगा
ये कोशिश बार-बार कर जाऊँगा
मेरी कोशिश भी रंग लाएगी
दूर खड़ी मंजिल मेरे संग आएगी
यही तो जीवन का सार है
कठिनाइयों से लड़ जाना ही
जिंदादिली का संसार है