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मेरे घर मे कई खिड़कियां है
मगर वो सारी बंद रहती है
घर मे हवाएँ भी कुछ मंद रहती है
घर का मौसम भी कुछ बुझा बुझा सा है
शायद कही कुछ रूका रूका सा है
मैने आज उन खिड़कियों को खोला है
मैने हंसकर मन से ये बोला है
खिड़कियों को यूं ही खुला रखूँगा सदा
जीने की शायद कुछ तो मिले वजह
ताजी हवा जब घर में आएगी
तुम्हे भी साथ कभी -न-कभी लेकर आएगी
मेरे घर मे कई आईने है
जिसके बेईमाने से मायने है
जिसमें मुद्दतो से मैने खुद को नहीं देखा है
जहाँ जमी धूल मिट्टी की मोटी सी एक रेखा है
ऐसे हालात में मैने कभी नहीं खुद को देखा है
शायद मुझे मेरी पहचान याद नहीं
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शायद मुझे मेरी मुस्कान याद नहीं
मैने आज खुद को उस आईने मे देखा है
मेरे होठों मे उकेरी हंसी की एक रेखा है
मैने खुद से आज ये हंसकर बोला है
इसी तरह आईने मे खुद को देखूँगा सदा
शायद कुछ तो दिख जाए मुझमे जीवन जीने की वजह
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