मै बैठा था अपने कमरे में तभी मेरा ध्यान
शायद मेरे कानो में आती एक शोर ने खीचा
ढ़ोलक की आवाज आ रही थी
मै सहर्ष ही अपने बालकोनी से नीचे झांक कर देखा
कुछ छोटे बच्चे जिन्होंने अपने मुंह में पेंट कर रखा था
ढोल बजाकर करतव दिखा रहे थे
मेरे आने तक उन्होंने ढ़ोलक बजाना बंद कर दिया था
एक कोने में थक कर चुपचाप बैठे थे
मैने उन्हें देखा तो मैने कुछ रूपये जो कम थे
ज्यादा नहीं थे बस थोड़े से मात्र थे नीचे गिरा दिया
उन्होंने देखा तो वो जो चुपचाप बैठे थे
खुश होकर आगे आए पर विडंबना
जो नोट मैने गिराए वो हवा में नीचे सीधे
बच्चे के पास ना जाकर नीचे के घरो के बालकोनी में जा गिरे
उस बच्चे ने मुझे उस दृष्टि से देखा
जहाँ उसे मेरा दोष भी नहीं दिख रहा था और
खुद की इस दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति के लिए भी
कहने के लिए उसके पास शब्द नहीं थे
उसकी आंखों में मैने बस बेचैनी देखी फिर मैने उस
बच्चे को इशारा किया कोई नहीं मै दूबारा तुम्हे देता हूँ तभी
वो थोडे़ से नोट उस घर के बालकोनी से किसी ने नीचे
बच्चों के तरफ गिरा दिया और ऊपर मेरी तरफ देख कर
मुस्कुरा दिया बच्चों के आंखों में प्रसन्नता थी
हांलाकि वो थोड़े से मात्र कुछ रूपये से
कुछ भला बच्चों का नहीं हो सकता है पर
एक दो पल की हंसी उन बच्चों के
चेहरे पर किसी बड़ी खुशी से कम ना थी
अक्सर लोगों के कानो में बंद ताले मै
अपने आस पास देखता रहता हूँ
जिनके शायद नहीं हकीकत में बहुत ऊंचे मकान है पर
दिल का जो मकान है वो बस रेगिस्तान और विरान है