कल मै रामलीला के अंतिम दिन
रावण दहन देखने गया था
वहाँ बहुत भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी
दूर -दूर से लोग रावण दहन को देखने आये थे
मैंने देखा करीब 40 फीट ऊंची रावण की प्रतिमा बनाई गई थी
मेघनाथ और कुंभकर्ण की भी विशाल प्रतिमा बनाई गयी थी
ऐसा लग रहा था जैसे सचमुच मे रावण लौट आया हो
रावण दहन की बारी आ गयी थी
श्रीराम ने तीर चलाया तीर रावण के सीने मे लगी
तभी आग के साथ रावण का शरीर जलने लगा
ठीक उसी समय जोर से बारिश होने लगी, आग बुझ गयी
तभी रावण की हंसी जोर -जोर से गुजने लगी
उसने कहा मै अपने युग का एक रावण हूँ
लेकिन आज के युग मे हर घर मे एक रावण है
जो हर दिन समाज को कलंकित करते रहते है
मै दोषी था इसलिए मैने दंड पाया और
हर साल मुझे दंड भुगतना पड़ता है
लेकिन आज के युग के जो रावण बने बैठे है
उन्हें कौन दंड देगा उनका दोष कौन देखेगा
हर जगह भष्ट्राचार है शोषण है
नारी का अपमान आए दिन होता रहता है
बेटियों को होने से पहले मार दिया जाता है
हिंसा अधर्म पाप सब कितना बढ़ गया है
मुझे लगता है मैंने गलती की श्रीराम को चुनौती देकर
मुझे कलयुग का इंतजार करना चाहिए था
इस युग मे मुझे कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती
मेरा काम कलयुग मे रहने वाले लोग ही कर देते
फिर रावण ने कहा,
इस संसार मे ऐसा कोई भी मनुष्य है
या यहाँ उपस्थित सबमें से कोई ऐसा है
जो बिल्कुल पवित्र और नेक हो
उसे ही मुझे मारने का अधिकार है
अगर है यहाँ ऐसा कोई तो वही
आगे आए केवल मुझे जलाने
फिर एकाएक बारिश रूक गयी
सबको लग रहा था जैसे वो सपने से जागे हो
और रावण ने जलने से इंकार कर दिया हो
फिर सब पहले जैसा सामान्य हो गया
लेकिन बहुत सारे सवाल छोड़ गया भविष्य के लिए
जिसके बारे मे शायद हमे सोचना चाहिए