मनुष्य के दु:ख का कारण है वो स्वंय से अधिक दूसरों से उम्मीद लगा बैठता है और इस वजह से जब उसकी उम्मीद टूट जाती है तो वो दु:खी हो जाता है दुःख एक ऐसी अवस्था है जिसमें मनुष्य अपने भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता है जिसमे मनुष्य के मस्तिष्क पर उसकी भावनाओं का भावनात्मक रूप से कब्जा हो जाता है एक ऐसी भावना की आंधी जिसमे मनुष्य भीतर तक टूट जाता है वही अवस्था को दुःख कहते है
जब मनुष्य को दु:ख को जीवन की सबसे बड़ी सीख समझ लेता है और अपनी कमियो को इसका कारण मानता है तो सदा सकारात्मक प्रभाव ही उसे प्राप्त होता है सकारात्मक रूप मे दुःख एक ऐसी भी अवस्था है जब मनुष्य दुःख को सकारात्मक रूप में लेता है तो अज्ञानी से महाज्ञानी साधारण से असाधारण जमीन से आसमान के सफर की शुरुआत की एक बेहद खास प्रक्रिया है जो लोहे को औजार बना देती है कीचड़ में कमल खिला देती है कोयले की खान में कोयले को हीरा बना देती है
दुःख के ना जाने कितने ही कारण हो सकते हैं इनमें कुछ प्रमुख कारणों को देखते हैं
- किसी अपने के चले जाने से दुःख
- नौकरी नहीं मिलने से
- असफल होने पर
- किसी वस्तु या धन के खोने पर दुःख
- खुद की अहमियत नहीं दिए जाने से दुःख
- तिरस्कारपूर्वक व्यवहार से दुःख ऐसे ना जाने कितने ही भावनाएं हैं जो हमें दुःख की अनुभूति कराती है
मेरे नजर में हम जब तक नहीं चाहे तब तक स्वयं की भावनाएं भी हम पर हावी नहीं हो सकती क्योंकि मनुष्य के मस्तिष्क में हर स्थिति में हर अलग तरह की भावनाएं होती है ये क्या है हमारे स्वयं के द्धारा ही हर अलग परिस्थितियों में भावना को व्यक्त करने का एक माध्यम ही तो है हम हर एक अलग परिस्थिति में मन से अलग तरह से सामने की स्थिति को महसूस करते है जैसे बहुत खुश हैं तो वातावरण खुला सा और हसमुख लगता है दुःख में है तो चारों ओर से मस्तिष्क मे एक भारीपन महसूस होता है तो ये सब हमारे दिमाग की ही देन है
दुःख के भी भिन्न-भिन्न प्रकार होते हैं
- कुछ शारीरिक दुःख होता है
- मानसिक दुःख
- आर्थिक दुःख
- कुछ औरो की सफलताओं को देखकर उत्पन्न होने वाला दुःख
दु:ख जीवन में हमे ये अनुभव कराने आते हैं की कोई भी अवस्था जीवन में अस्थायी नहीं होते है हमे ये नहीं मान बैठे की जीवन में अगर सुख है तो दु:ख दस्तक नहीं देगा हमे दु:ख के लिए भी तैयार होना चाहता है बिल्कुल दुःख हमारे साहस और धैर्य की परीक्षा लेती है जो इनमें जितना तपेगा वो उतना निखर कर बाहर आएगा दुःख में हमारा वास्तव में स्वयं से परिचय होता है हमें ये पता चलता है कि हम क्षमतावान है या नहीं मुसीबतों से लड़ने का सामर्थ्य हमारे अंदर है या समस्याओं से भागने का जो इन परिस्थितियों में धैर्यवान बना रहता है बिना विचलित हुए शांतिपूर्वक अपने मेहनत पर ध्यान देता है वो मनुष्य कभी भी दुःख से पराजित नहीं हो सकता
दुःख से मुक्ति के उपाय
- स्वयं की भावनाओं पर नियंत्रण
- परिस्थितियों को समझना और उन परिस्थितियों के अनुरूप अपना सर्वश्रेष्ठ देना
- भयभीत नहीं होना क्योंकि भय को जितना अधिक खुद पर हावी होने देंगे ये उतना बढ़ता जाएगा
- अपने आस-पास के लोगों से सीखना उनसे सकारात्मकता के संबंध में सदैव बात करना
- जीवन भर सीखने की प्रवृत्ति
- सच बोलना
- निराशा के भाव से मुक्ति जब भी निराश हो तो एक छोटे बच्चे का मुस्कुराता चेहरा याद करें किसान की कड़ी धूप में की जाने वाली मेहनत याद करें एवं अपनी मां का चेहरा याद करें इसके बाद संसार के किसी भी सबसे शक्तिशाली इंसान के आंख में आंख डालकर बात कर सकते है आप
भगवान हमे जीवन की सच्चाई से अवगत कराने के लिए दु:ख देते हैं ताकि हम किसी के भरोसे बैठे नहीं रहे बल्कि कर्म को ही अपना सब कुछ मान कर कार्य करते रहे सुख छनिक है जो केवल लालच देने आती है और दुःख शिक्षक जो मनुष्य को शून्य से शिखर तक की यात्रा के लिए आती है कुछ नहीं से सबकुछ देने आती है ये हम पर निर्भर करता है की हम सकारात्मक रूप में इसे ले या फिर नकारात्मक रूप में मानव दुःख में असहाय हो जाता है क्योंकि वो दूसरे के भरोसे रहता है जिस दिन मनुष्य स्वयं के भरोसे हो जाएं तो दुनिया असहाय नहीं बल्कि कर्मयोगी कहेगी अपने कर्मों के प्रति निष्ठावान एक जोशीला मनुष्य कहेगी
- हम तब तक नहीं हारते जब-तक हम खुद को हारा हुआ ना समझे
- दुःख केवल मन को उलझनों में धिरे रखने का निर्णय ही तो है
- दुख और सुख हमारे मन के भाव पर निर्भर करते हैं
- दुःख जीवन के उद्धार की एक प्रक्रिया है
- दुःख जीवन में हमें काफी मजबूत बनाती है
- दुःख सदा सुख के आने की सूचना लेकर आती है
- दुःख हमें ईश्वर के सबसे करीब लाती है
- दुःख मानव के धरातल से उंचाई तक पहुंचने की एक शानदार प्रक्रिया है
- दुःख क्षणिक होती है पर महान शिक्षक की भूमिका निभाती है
- दुःख में ही मनुष्य असीम संभावनाओं को तलाश करता है जो मनुष्य की श्रेष्ठ प्रक्रिया में से एक है
दुःख को सदैव शिक्षक के रूप में जीवन में स्वीकार करें अगर दुःख को हम दुःख नहीं समझते हैं तो वो हमें ऐसा ज्ञान अवश्य दें जाता है जो हमारे जीवन को नयी उंचाई प्रदान करता है दुःख क्यों आता है दुःख अक्सर इसलिए आता है की हम कभी-कभी सुख में बेहद अंहकारी हो जाते हैं कभी -कभी लोगों का अनादर भी करते हैं मर्यादाओं को भूल जाते हैं तो इन सब का पाठ पढ़ाने के लिए दुःख को आना पड़ता है और पैसे के महत्व का सदैव ज्ञान कराता है की जो जरूरतमंद है उनकी मदद तुम जरूर करो जब तुम कर सकते हैं क्योंकि जरूरतमंदों के तकलीफ का पता जब स्वयं मनुष्य जरूरतमंद बनता है तब उसको इसका ज्ञान होता है
दु:ख हमे अच्छे समय की कद्र करवाने के लिए आता है और अच्छे समय में औरों के दु:ख को बांट सके ये सीखाना चाहता है ताकि जब हम दुखी हो तो कोई तो हो जो हमारे दुःख को बांट सकें दुःख में हम धैर्य साहस खुद पर भरोसा और मेहनत एवं सत्य जैसी चीजों को सीख सकते है इन सबो का मिला-जुला मिश्रण हम स्वंय बन जाए तो यकिनन दुःख थोड़े दिनों में स्थाई सुख की अनुभूति देगी क्योंकि हम वो सीख चुके होंगे जो हमने अभी तक नहीं सीखा