एक बेजुबान अपाहिज इंसान जो कभी बोल नही सकता है उसे भी शायद हो गया है प्यार कैसे कह पाएगा कुछ भी उसकी बात उस तक कैसे पहुँचेगी वो ना ही उसे आवाज दे सकता है ना ही उसे जोर जोर से चीख कर बुला सकता है उसकी तड़प उसकी बेबसी कौन समझेगा बस हर रोज वो कुछ कहने की कोशिश करता है मगर उसकी आवाज उस तक कभी पहुंचती ही नहीं है वो हर रोज उसे बस जाते हुए आते हुए देखता है अपनी आंखों से हर बार कुछ कहना चाहता है शायद पर उसकी आंखे भी अब पथरा गयी है जो जन्म से ही ना बोल सकता था ना चल सकता था बस देख सकता था अपनी बेबसी में भी उसने प्यार कर लिया है ये अपराध कर लिया है काश कभी उसकी तरफ वो एक बार भी देख लेती तो शायद उसे यकीन था वो कुछ पल सुकून के जी लेता किसी दिन कभी किस्मत उस पर मेहरबान होती शायद वो कभी उसे आवाज देती उसे दूर से अपने पास बुलाती उसे आने के लिए उसका नाम पुकारती तो उसे यकीन था वो खड़े होकर दौड़ कर उसके पास पहुंचा सकता था पहली बार वो कोशिश करके उसके लिए दो शब्द भी बोल सकता था
वो कर सकता था वो अपनी बेबसी से बाहर आ सकता था लेकिन उसने कभी ना उसे देखा ना उसकी घर के सामने पहुंच कर हर बार उसने मुंह फेर लिया कभी उसकी तरफ देखा भी नहीं लेकिन वो पूरे दिन उसके इंतजार में ही जीता था हर बार वो आज भी शायद इसी इंतजार में है की शायद वो कभी उसे पुकारे इसी उम्मीद में वो बस वो जी रहा है लेकिन उसका विश्वास शायद अब भी कायम है शायद कभी तो कोई दिन ऐसा जरूर आएगा वो पुकारेगी उसे और वो अपनी बेबसी से बाहर आएगा
प्रेम की ये तपिश जलते अंगारों से कहाँ कम थी
राह देख भी रहे थे और राख हो भी रहे थे
सब कुछ शायद जल कर खाख हो गया था मेरा
लेकिन उस राख के ढ़ेर में
कहीं न कहीं दिल अब भी धड़क रहा था मेरा
दिल को शायद अब भी आश थी
राख होकर भी प्यास थी
राख होकर भी प्यास थी