मेरा मानना है की शंकाएं और निराशावाद ही ज्यादातर लोगों को कोई भी कोशिश करने से रोकता है क्योंकि मन मे शंकाएं और डर की वजह से ही लोग कोशिश करने से डरते हैं क्योंकि जो निराश होता है वो कभी नहीं जीतता, जीतता वही है जिसमें विश्वास होता है अनियंत्रित डर और शंका के कारण लोग जीवन मे हमेशा निराश और निष्क्रिय रहते हैं मंजिल पर वही पहुंचता है जो कोशिश करता है जो कोशिश ही नहीं करता है वो एक जगह बैठा रहता है तो वो कभी कही पहुँच नहीं पाता है जो कोशिश करते है वो असफल होते हैं लेकिन वो निराश नहीं होते बल्कि असफलता का विश्लेषण करते हैं जबकि जो कोशिश नहीं करते है वो केवल अपनी निराशाओ को आलोचना के रूप मे व्यक्त करते है
जीवन मे चाहे रिश्ते हो व्यवसाय हो या करियर हो बस जरूरत है सब का आपस मे तालमेल बिठाने की,हर बार कोशिश करे जब लगे बात नहीं बन रही है तो एक बार एक कोशिश और करे यही कोशिश करना आपकी आदत बन जाती है और आप जीतना सीख जाते हैं
हमारी जीवन मे हमारी शिक्षा का सबसे ज्यादा असर हमारी आदतों पर होता है डरने मे कोई बुराई नहीं है बस उससे उबरने का एक ही तरीका होता है लगातार कोशिश करना,अगर हम जीवन में डर, निराशावाद, आलस, बुरी आदतें, अंहकार पर विजय प्राप्त कर लेते है धीरे- धीरे सही कोशिश करने की आदत बन जाती है कोशिश करने वाले जानते है की विजेताओं को हार से प्रेरणा मिलती है क्योंकि कोशिश करने वाले विपदा को अवसर के रूप में बदलने की कोशिश करता है ज्यादातर लोग नुकसान से बचने के लिए कोशिश भी नहीं करते है लेकिन जो लोग कोशिश करते है और हार भी जाते है तो बहुत कुछ सीख जाते है और उनकी हार जीत से कम नहीं होती है क्योंकि उन्हें अपनी शंकाओं का अपने निराशा का समाधान मिल जाता है क्योंकि उन्होंने जीत और हार को परे रखकर कोशिश की
सबसे पहले हमे बहाने नहीं बनाना है जैसे कुछ लोग अगर समाज मे सुधार लाना चाहते है तो बहुत से लोग ये कहेंगे की ये झंझट भरा काम है, मेरी इसमें कोई रूचि नहीं है, मुझे क्या पड़ी है समाज को बदलने की, जब मेरी उम्र अधिक होगी तब मै ऐसा करूँगा लेकिन करेगा कोई नहीं अधिकांश लोग इसी विकल्प को चुनेगे ये एक तरह से हार ही है जो समाज को बदलने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है लेकिन उनमें से जो भी आगे आएगा वही कोशिश करेगा समाज मे उसकी कोशिश से कुछ तो बदलाव आएगा ही,लेकिन ऐसे लोग ही होते है जिनके पास समस्या को देखने का एक नया तरीका है उनके पास जो विकल्प होता है वो अनमोल होता है जो लोग सीखना नहीं चाहते जीत का रास्ता निकालना नहीं चाहते वो नये तरीके में त्रुटि और बहस का रास्ता खोजें लेते है यह रास्ता हार की ओर हमेशा ले जाता हैं
हार अंत नही, यहां से जीत की शुरुआत होती है इसे मै उदाहरण से समझते हैं तीन तरह के लोग होते हैं
असफल इंसान, साधारण इंसान, सफल इंसान जिनमें उम्र, बुद्धि, उनका आचारण सब भिन्न होगा इनका हार और जीत को देखने का ढंग भी अलग होगा जो असफल इंसान होगा वो जब एक बार किसी रेस मे हिस्सा ले और दौड़ते हुए गिर जाए तो वो वही पड़े अपने चोट को सहलाते रहेगे जो साधारण इंसान होगा वो जब रेस मे हिस्सा ले और दौड़ते हुए गिर जाए तो घुटनो के बल बैठ जाएंगे और रेग कर चलने की कोशिश करेगे थोड़ी दूर रेगनें के बाद रूक जाएंगे जबकि जो सफल इंसान होगा जब रेस मे हिस्सा लेगा और जब वो गिर जाएगा तो तुरंत उठ कर अपने दर्द को भूलकर दौड़ते नजर आएगा और वही रेस जीतेगा
जीत किसी की भावनाओं और बेबसी पर कब्जा जमाकर नहीं ली जा सकती अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़कर कोई विजेता नहीं बनता पराजय अगर सच कि राह में मिले तो ये हमारी जीत की संभावना को सौ गुणा बढ़ा देता है मेरे घर के सामने एक बिजली के खम्बे के दरार में एक गोरैया रहती है उसने वहां उन दरारों में अपना घोंसला बनाया था कुछ दिन पहले बिजली कर्मचारी बिजली की तारों की मरम्मत करने के लिए उस बिजली के खम्बे पर चढ़े और खम्बे के दरार में जो गोरैया का घोंसला था उसे सड़क पर रख दिया उन्होंने घोंसले को उजाड़ा नहीं बस सफाई की और घोंसले को सड़क पर एक किनारे रख दिया गोरैया का आशियाना बिखर गया
अगली सुबह से मैंने देखा गोरैया छोटे-छोटे तिनके अपने नन्हे से मुंह में दबाकर लाती थी
लगातार कुछ दिनों के मेहनत के बाद गोरैये ने दूबार अपना आशियाना बना डाला
उस नन्ही सी चिड़िया ने अपने घर के बिखर जाने के बाद भी हार नहीं मानी
अगले ही दिन से रोज लगातार छोटे- छोटे तिनके जमा करके अपना घर बनाया
इससे बड़ी सीख और सकारात्मकता और क्या होगी क्योंकि कहानी तो कहानी होती है मगर जो हकीकत सामने गुजरे और जो शिक्षा दे उससे प्रेरणा लेनी चाहिए और हो सके तो उसे दूसरों के साथ बांटना भी चाहिए
जो मनुष्य अपने भय पर काबू करके कार्य करता है तो उसे सफलता अवश्य मिलती है क्योंकि जब भी कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने जाता है उसके मन में कहीं न कहीं जीतने और हारने की आशंकाएं रहती है उसके मन में एक प्रकार का द्वंद् चलता रहता है जिससे कार्य के प्रति प्रबलता के बजाय दुर्बलता व्यक्ति पर हावी होने लगती है और जब मनुष्य इस दुर्बलता पर काबू पा लेता है अपने डर को खुद के प्रबल इच्छाशक्ति से काबू कर लेता है तो वो विजेता बन कर उभरता है और अपने डर पर जीत हासिल कर लेता है केवल अपनी हिम्मत और इच्छाशक्ति के बलबूते उस व्यक्ति के लिए संसार में कोई भी कार्य कठिन नहीं रहता और न ही उसके कार्यों पर डर का कोई प्रभाव पड़ता है क्योंकि उसने डर से लड़ना सीख लिया तथा जीतना भी सीख लिया है इसलिए कहते हैं डर के आगे जीत है
जीत वो है जिससे सबका कल्याण हो जिस जीत में मानवता विजयी हो वही तो जीत है जिस जीत में एक गहरा संतोष का भाव है और वो जीत सदैव स्थाई रूप में मौजूद हो जिसमें मानवता का धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है जिस जीत में जहां सदैव मुस्कान और हंसी गूंजती हो और मानवीय चेतनाओं को जगाने का काम करें वहीं तो असली जीत है कभी -कभी मानवीय मूल्यों की जीत सबसे बड़ी होती है जिसमे हम किसी के चेहरे पर संतोष की मुस्कान साफ रूप से देख सकते है और किसी के चेहरे की मुस्कान हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती है और वो मुस्कान हम सदैव भूल नहीं पाते है,जीत अगर विश्वास की हो जीत अगर सच की हो जीत अगर प्रेम की हो जीत अगर शांति की हो जीत अगर सद्भावना की हो,जिस जीत में सबके कल्याण की भावना निहित हो वही तो असल मायने में जीत है जो जीत जीवन के मूल्यों को बताती है जीतने में संधर्ष तो करने पड़ते हैं पर इन संधर्षो से ऊपर उठना ही तो जीवन मूल्यों की जीत है
जो खुद के लिए नहीं सबके लिए एक सुखद परिवर्तन की कोशिश में दिन-रात कार्य कर रहा है जिसके अंदर करूणा प्रेम सहयोग त्याग सदाचार और सबके लिए एक अच्छी सोच हो मेरी नजर में वही जीत हैं किसी भी विजेता के जीत के मायने तभी सार्थक है जब वो एक बेहतर समाज को बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है समाज वैसा ही बनेगा जैसा हम सोचेंगे जो नयी सोच के साथ लोगों को परिवर्तित होने के लिए प्रेरित करें वहीं तो विजेता का सबसे प्रभावशाली कार्य है,जो समाज में फैली कुरितियां के खिलाफ खड़ा होता है वही विजेता हैं हम तभी वास्तव मे सफल है जब हमारे आस पास के लोग सफल है